पूज्य बापूजी के दिव्य दर्शन और भारतीय संस्कृति का सर्वहितकारी ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

Sunday, January 30, 2011



धन्याष्टकम् - Dhnyashtkam

(श्रीमद् आद्य शंकराचार्यविरचितम्) -Shankracharyaji

तत्ज्ञानं प्रशमकरं यदिन्द्रियाणां
तत्ज्ञेयं यदुपनिषत्सुनिश्चितार्थम्।
ते धन्या भुवि परमार्थनिश्चितेहाः
शेषास्तु भ्रमनिलये परिभ्रमंतः ॥१॥


वह ज्ञान है जो इन्द्रियों की चंचलता को शांत कर दे, वह जानने योग्य है जो उपनिषदों द्वारा निश्चित किया गया अर्थ है। इस पृथ्वी परवे धन्य हैं परमार्थ ही जिनका निश्चित उद्देश्य है बाकी लोग तो इस मोह संसार में भ्रमण ही करते हैं ॥1॥

आदौ विजित्य विषयान्मोहराग-
द्वेषादिशत्रुगणमाह्रतयोगराज्याः।
ज्ञात्वा मतं समनुभूयपरात्मविद्या-
कांतासुखं वनगृहे विचरन्ति धन्याः ॥२॥

मोह, राग, द्वेष आदि शत्रुरूप विषयों की इच्छा को आरंभ में ही जीत कर, योग के राज्य में आरूढ़ होने वाले, ज्ञान की प्राप्ति और सम्यक् अनुभूति कर के, परा विद्या रूपी पत्नी के साथ वन रूपी गृह में विचरने वाले धन्य हैं ॥2॥


त्यक्त्वा गृहे रतिमधोगतिहेतुभूताम्
आत्मेच्छयोपनिषदर्थरसं पिबन्तः।
वीतस्पृहा विषयभोगपदे विरक्ता
धन्याश्चरंतिविजनेषु विरक्तसंगाः ॥३॥

अधो गति के मूल कारण, घर की आसक्ति को छोड़कर, स्वयं को जानने के लिए
उपनिषदों का अर्थ रूपी रस पीने वाले, सभी विषय भोगों और पदों की इच्छा न करने वाले, विरागी, एकांत में रहने वाले, विरक्तों का साथ करने वाले धन्य हैं ॥3॥


त्यक्त्वा ममाहमिति बंधकरे पदे द्वे
मानावमानसदृशाः समदर्शिनश्च ।
कर्तारमन्यमवगम्य तदर्पितानि
कुर्वन्ति कर्मपरिपाकफलानि धन्याः ॥४॥

'मैं' और 'मेरा' इन दो बांधने वाले पदों का त्याग करने वाले, मान और अपमान में समान रहने वाले, सबको समान दृष्टि से देखने वाले, दूसरे को कर्ता समझ कर उसको कुशल कर्मों के फल अर्पित करने वाले धन्य हैं ॥4॥
त्यक्त्वैषणात्रयमवेक्षितमोक्षमार्गा
भैक्षामृतेन परिकल्पितदेहयात्राः ।
ज्योतिः परात्परतरं परमात्मसंज्ञं
धन्या द्विजारहसि हृद्यवलोकयन्ति ॥५॥

तीनों प्रकार (पुत्र, वित्त और लोक) की कामनाओं का त्याग करने वाले,मोक्ष मार्ग की खोज करने वाले, भिक्षा रूपी अमृत पर ही इस मानी हुई देह का निर्वाह करने वाले, पर से भी परे परमात्मा नाम वाले प्रकाश को हृदय में देखने वाले ब्राह्मण धन्य हैं ॥5॥

नासन्न सन्न सदसन्न महन्न चाणु
न स्त्री पुमान्न च नपुंसकमेक बीजम् ।
यैर्ब्रह्म तत्समनुपासितमेक चितैः
धन्या विरेजुरितरे भवपाश बद्धाः॥६॥

जो न सत है , न असत और न सत और असत दोनों ही, न विशाल है और न सूक्ष्म, न स्त्री, न पुरुष और न नपुंसक ही, जो एक है और मूल कारण है, उस ब्रह्म की जो एकाग्र मन से उपासना करते हैं, वे धन्य हैं; दूसरे तो जन्म मृत्युरूपी पाश में बंधे हैं ॥6॥

अज्ञानपंकपरिमग्नमपेतसारं
दुःखालयं मरणजन्मजरावसक्तम्।
संसारबंधनमनित्यमवेक्ष्य धन्या
ज्ञानासिना तदवशीर्य विनिश्चयन्ति ॥७॥

अज्ञान रूपी कीचड़ में घिरे हुए, सारहीन, दुखों के घर, जन्म, मृत्यु और वृद्धावस्था से सम्पर्क वाले इस संसार रूपी बंधन को अनित्य जान कर इसे ज्ञान रूपी तलवार से काटने का निश्चय करने वाले धन्य हैं ॥7॥

शांतैरनन्यमतिभिर्मधुरस्वभावैः
एकत्वनिश्चितमनोभिरपेतमोहैः।
साकं वनेषु विजितात्मपदस्वरूपं
तद्वस्तु सम्यगनिशं विमृशन्ति धन्याः ॥८॥

शांत, अनन्य मति वाले, मधुर स्वभाव वाले, मन में एक ही निश्चय वाले, मोह से वियुक्त, वनों में रहने वाले, आत्म पद को प्राप्त करके उसके बारे में सम्यक् प्रकार से निरंतर विचारकरने वाले धन्य हैं
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4 comments:

  1. Bhaarteey Upnishadon ka gyaan is blog ke through aapne available kraaya hai. It's really very-very useful n knowledful. Keep it up!!!

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  2. Hariom, Param Pujya Sant Shiromani Asaramji Bapu ke 'Divine Darshan' ke saath-saath Bharteey Sanskriti ke Granthon ka samanvay. ye aapka bahut hi acha idea hai. aapko khub-khub Sadhoowaad!!!

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  3. waaaaaaaaaaaaah kitna sundertm best gyan h bhartiya sanskriti(indian culture) ke paas. or aapke blog ki saari post bharat ke gyan bagiche ke sunder phoolon se sja hua vo guldasta h jiski jrurat saare vishvvasiyon(universe) ko h, jo nakli,dikhavati guldasto se apna jiwan mehkane ki nakam koshish kr rhe h. aap bhartiye sanskriti ke gyan ko hum tk u hi pahunchate or koi sewa ho to jarur btana ji hum aapke aabhari rhenge.

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  4. Wah prabhuji, bohot achi bat h, Bharatiya sanskriti ka sarv hitkari gyan hum sab ko itni asani se is blog pe prapt ho jata h, iske liye apko khub khub dhanyavad, apki sewa sadhna yu hi khub badhe, hariom

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