पूज्य बापूजी के दिव्य दर्शन और भारतीय संस्कृति का सर्वहितकारी ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

Wednesday, October 26, 2011



चतुःश्लोकी - Chatushaloki

(श्रीवल्लभाचार्य‎ जी ) - Shri Vallabhacharyaji



सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो व्रजाधिपः।
स्वस्यायमेव धर्मो हि नान्यः क्वापि कदाचन॥१॥

सभी समय, सब प्रकार से व्रज के राजा श्रीकृष्ण का ही स्मरण करना चाहिए। केवल यह ही धर्म है, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं॥१॥

एवं सदा स्वकर्तव्यं स्वयमेव करिष्यति।
प्रभुः सर्व समर्थो हि ततो निश्चिन्ततां व्रजेत् ॥२॥

इस प्रकार अपने कर्तव्यों का हमेशा पालन करते रहना चाहिए, प्रभु सर्व समर्थ हैं इसको ध्यान रखते हुए निश्चिन्ततापूर्वक रहें॥२॥

यदि श्रीगोकुलाधीशो धृतः सर्वात्मना हृदि।
ततः किमपरं ब्रूहि लोकिकैर्वैदिकैरपि॥३॥

यदि तुमने सबके आत्मस्वरुप गोकुल के राजा श्रीकृष्ण को अपने ह्रदय में धारण किया हुआ है, फिर क्या उससे बढ़कर कोई और सांसारिक और वैदिक कार्य है॥३॥

अतः सर्वात्मना शश्ववतगोकुलेश्वर पादयोः।
स्मरणं भजनं चापि न त्याज्यमिति मे मतिः॥४॥

अतः सबके आत्मस्वरुप गोकुल के शाश्वत ईश्वर श्रीकृष्ण के चरणों का स्मरण और भजन कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए, ऐसा मेरा (श्री वल्लभाचार्य का) विचार है॥४॥

Thursday, October 13, 2011


कृष्णाष्टकं - Krishnashtkam

(श्रीवल्लभाचार्य जी) - Shree Vallabhacharyaji

कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥१॥

श्रीराधारानी श्रीकृष्ण प्रेम से ओत प्रोत हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधारानी के प्रेम से। जीवन के नित्य धनस्वरुप श्रीराधाकृष्ण मेरा आश्रय हों ॥1॥

कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः। 
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥२॥

श्रीकृष्ण का धन श्रीराधारानी जी हैं और श्रीराधारानी जी  का धन श्रीकृष्ण। जीवन के नित्य धनस्वरुप श्रीराधाकृष्ण मेरा आश्रय हों॥2॥  

कृष्णप्राणमयी राधा राधाप्राणमयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥३॥

श्रीकृष्ण के प्राण श्रीराधारानी जी में बसते हैं और श्रीराधारानी जी के प्राण श्रीकृष्ण में। जीवन के नित्य धनस्वरुप श्रीराधाकृष्ण मेरा आश्रय हों ॥3॥

कृष्णद्रवामयी राधा राधाद्रवामयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥४॥

श्रीकृष्ण के नाम से श्रीराधारानी जी प्रसन्न होती हैं और श्रीराधारानी जी के नाम से श्रीकृष्ण। जीवन के नित्य धनस्वरुप श्रीराधाकृष्ण मेरा आश्रय हों ॥4॥

कृष्ण गेहे स्थिता राधा राधा गेहे स्थितो हरिः।  
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥५॥

(मन से) श्रीराधारानी जी  श्रीकृष्ण के घर में स्थित हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधारानी जी के घर में। जीवन के नित्य धनस्वरुप श्रीराधाकृष्ण मेरा आश्रय हों ॥5॥

कृष्णचित्तस्थिता राधा राधाचित्स्थितो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥६॥

श्रीराधारानी जी के मन में श्रीकृष्ण स्थित हैं और श्रीकृष्ण के मन में श्रीराधारानी जी। जीवन के नित्य धनस्वरुप श्रीराधाकृष्ण मेरा आश्रय हों ॥6॥

नीलाम्बरा धरा राधा पीताम्बरो धरो हरिः।  
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥७॥  

श्रीराधारानी जी नीले वस्त्र धारण करती हैं और श्रीकृष्ण पीले। जीवन के नित्य धनस्वरुप श्रीराधाकृष्ण मेरा आश्रय हों॥7॥

वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥८॥

वृन्दावन की देवी हैं श्रीराधारानी जी और वृन्दावन के देवता हैं श्रीकृष्ण। जीवन के नित्य धनस्वरुप श्रीराधाकृष्ण मेरा आश्रय हों॥8॥