पूज्य बापूजी के दिव्य दर्शन और भारतीय संस्कृति का सर्वहितकारी ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

Thursday, February 10, 2011


केन उपनिषद् - Ken Upnishad

द्वितीयः खण्ड: - 2nd Khand

यदि मन्यसे सुवेदेति दहरमेवापि
नूनं त्वं वेत्थ ब्रह्मणो रूपम् ।
यदस्य त्वं यदस्य देवेष्वथ नु
मीमाँस्येमेव ते मन्ये विदितम् ॥ १ ॥

यदि तू ऐसा मानता है कि ‘मैं अच्छी तरह जानता हूँ’ तो निश्चय ही तू ब्रह्म का थोड़ा-सा ही रूप जानता है। इसका जो रूप तू जानता है और इसका जो रूप देवताओं मे विदित है [वह भी अल्प ही है] अतः तेरे लिए ब्रह्म विचारणीय ही है। [तब शिष्य ने एकान्त देश मे विचार करने के अनन्तर कहा-] ‘मैं ब्रह्म को जान गया-ऐसा समझता हूँ’ ।।1।।

नाहं मन्ये सुवेदेति नो न वेदेति वेद च ।
यो नस्तद्वेद तद्वेद नो न वेदेति वेद च ॥ २ ॥

मैं न तो यह मानता हूँ की ब्रह्म को अच्छी तरह जान गया और न यही समझता हूँ कि उसे नहीं जानता। इसलिये मैं उसे जानता हूँ [और नहीं भी जानता] । हम शिष्यों मे से जो उसे ‘न तो नहीं जानता हूँ और न जानता ही हूँ’ इस प्रकार जानता है वही जानता है ॥2॥

यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः ।
अविज्ञातं विजानतां विज्ञातमविजानताम् ॥ ३ ॥

ब्रह्म जिसको ज्ञात नहीं है उसीको ज्ञात है और जिसको ज्ञात है वह उसे नहीं जानता; क़्योंकि वह जाननेवालों का बिना जाना हुआ है और न जाननेवालों का जाना हुआ है [क्योकि अन्य वस्तुओं के समान दृश्य न होने से वह विषयरूप से नहीं जाना जा सकता] ॥3॥

प्रतिबोधविदितं मतममृतत्वं हि विन्दते ।
आत्मना विन्दते वीर्यं विद्यया विन्दतेऽमृतम् ॥ ४ ॥

जो प्रत्येक बोध (बोद्ध प्रतीति)-मे प्रत्यगात्मरूप से जाना गया है वही ब्रह्म है-यही उसका ज्ञान है, क्योंकि उस ब्रह्मज्ञान से अमृतत्व की प्राप्ति होती है । अमृतत्व अपने ही से प्राप्त होता है, विद्या से तो ज्ञानान्धकार को निवृत्त करने का सामर्थ्य मिलता है ॥4॥

इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति
न चेदिहावेदीन्महती विनष्टिः ।
भूतेषु भूतेषु विचित्य धीराः
प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति ॥ ५ ॥

यदि इस जन्म मे ब्रह्म को जान लिया तब तो ठीक है और यदि उसे इस जन्म मे न जाना तब तो बड़ी भारी हानि है । बुद्धिमान् लोग उसे समस्त प्राणियों मे उबलब्ध करके इस लोक से जाकर अमर हो जाते हैं ॥5॥

 ॥ इति केनोपनिषदि द्वितीयः खण्डः ॥

2 comments:

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  2. Bahut hi kamaal ka prayas hai ji, Humari bhartiy satsahter, chahe ve puran ho ya ved ya upnishad, aise gyan se bhare hai ki padh kar man gad gad ho jata hai.

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