पूज्य बापूजी के दिव्य दर्शन और भारतीय संस्कृति का सर्वहितकारी ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

Thursday, April 22, 2010

अष्टावक्र गीता - AshtaVakar Geeta
अष्टम अध्याय - 8th Adhyay

अष्टावक्र उवाच -
तदा बन्धो यदा चित्तं किन्चिद् वांछति शोचति।
किंचिन् मुंचति गृण्हाति किंचिद् हृष्यति कुप्यति ॥१॥

श्री अष्टावक्र कहते हैं -
तब बंधन है जब मन इच्छा करता है, शोक करता है, कुछ त्याग करता है, कुछ ग्रहण करता है, कभी प्रसन्न होता है या कभी क्रोधित होता है ॥१॥

तदा मुक्तिर्यदा चित्तं न वांछति न शोचति।
न मुंचति न गृण्हाति न हृष्यति न कुप्यति ॥२॥

तब मुक्ति है जब मन इच्छा नहीं करता है, शोक नहीं करता है, त्याग नहीं करता है, ग्रहण नहीं करता है, प्रसन्न नहीं होता है या क्रोधित नहीं होता है ॥२॥

तदा बन्धो यदा चित्तं सक्तं काश्वपि दृष्टिषु।
तदा मोक्षो यदा चित्तमसक्तं सर्वदृष्टिषु ॥३॥

तब बंधन है जब मन किसी भी दृश्यमान वस्तु में आसक्त है, तब मुक्ति है जब मन किसी भी दृश्यमान वस्तु में आसक्तिरहित है ॥३॥

यदा नाहं तदा मोक्षो यदाहं बन्धनं तदा।
मत्वेति हेलया किंचिन्मा गृहाण विमुंच मा ॥४॥

जब तक 'मैं' या 'मेरा' का भाव है तब तक बंधन है, जब 'मैं' या 'मेरा' का भाव नहीं है तब मुक्ति है। यह जानकर न कुछ त्याग करो और न कुछ ग्रहण ही करो ॥४॥

2 comments:

  1. waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah.............


    jey baaaaaaaaaaaaaaaat


    kam se kam- bharat vassiyon ko yahan(is gyan me)apni shakti samay or samarthya lagana chahiye

    shree hari...shree hari... shree hari

    ReplyDelete