पूज्य बापूजी के दिव्य दर्शन और भारतीय संस्कृति का सर्वहितकारी ज्ञान

नारायण नारायण नारायण नारायण

Sunday, July 11, 2010


नारद भक्ति सूत्र - Narad Bhakti Sutr
तृतियोऽध्यायः- 3rd Adhyay

तस्याः साधनानि गायन्त्याचार्याः ।

आचार्य उस (भक्ति) को प्राप्त करने के साधन (उपाय) बताते हैं

तत्तु विषयत्यागात् सङ्गत्यागात् च ।

वह (भक्ति साधन ) तो विषय त्याग तथा संग त्याग से प्राप्त होता है

अव्यावृत्तभजनात् ।

(अथवा) अखण्ड भजन से

लोकेऽपि भगवद्गुणश्रवणकीर्तनात् ।

लोक समाज में भी भगवद् गुण श्रवण तथा कीर्तन से

मुख्यतस्तु महत्कृपयैव भगवत्कृपालेशाद वा ।

मुख्यतया महापुरुषों की कृपा से, या भगवद् कृपा के लेश मात्र से

महत्सङ्गस्तु दुर्लभोऽगम्योऽमोघश्च ।

परन्तु महापुरुषों का संग दुर्लभ, अगम्य तथा अमोध है

लभ्तेऽपि तत्कृपयैव ।

लेकिन भगवान की ही कृपा से वह मिलता है ।

तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात् ।

भगवान में और संत में कोई फर्क नहीं है ।

तदेव साध्यतां तदेव साध्यताम् ।

उसकी ही साधना करो, उसकी ही साधना करो

दुस्सङ्गः सर्वथैव त्याज्यः ।

बुरी संगति को सदा के लिये त्याग दो ।

कामक्रोधमोहस्मृतिभ्रंशबुद्धिनाशकारणत्वात् ।

ये काम और क्रोध मोहित कर, स्मृति को भ्रंश कर देते हैं और बुद्धि के नाश का कारण बनते हैं ।

तरङगायिता अपीमे सङ्गात् समुत्रायन्ते ।

यह (काम क्रोध मोह आदि ) पहले तरंग की तरह आकर समुद्र (की भान्ति) हो जाते हैं

कस्तरति कस्तरति मायाम् यः सङ्गं त्यजति यो महानुभाव् सेवते निर्ममो भवति ।

कौन तरता है कौन तरता है, माया से? जो सब संगों का त्याग करता है, जो महापुरुषों की सेवा करता है, जो ममता रहित होता है

यो विविक्तस्थानं सेवते यो लोकबन्धमुनमूनयति निस्त्रैगुण्यो भवति योगक्षेमं त्यजति ।

जो निरजन स्थान का सेवन करता है, लौकिक बन्धनों को तोड़ देता है, तीनों गुणों से पार हो जाता है तथा जो योग और क्षेम का त्याग कर देता है

यः कर्मफलं त्यजति कर्माणि सन्नयस्स्यति ततो निर्द्वन्द्वो भवति ।

जो कर्म फल का त्याग करता है, (वह) कर्मों का भी त्याग कर देता है, तथा निर्द्वन्द्व होता है ।

यो वेदानपि सन्नयस्यति केवलमविच्छिन्नानुरागं लभते ।

जो वेदों में बताये फल प्रदायक कर्मो भी त्यागता है केवल तथा अविच्छिन्न अनुराग ही रह जाता है

स तरति स तरति स लोकांस्तारयति ।

वह तैरता है, वह तैरता है, वह इस लोक को भी तारता है ।

1 comment:

  1. ज्ञान का अपूर्व खजाना है यह ब्लॉग तो ।
    ये सब आचरण में लाना कठिन है पर प्रयत्न तो किया ही जा सकता है ।

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